कैसे हुआ है भारतीय वास्तु का जन्म
वास्तु के सन्दर्भ में लिखने से पूर्व वास्तु आराध्य भगवान विश्वकर्मा जी को कोटिशः नमन्। भारतवर्ष में जब-जब अवतार हुए उनके राज भवन के निर्माण में भगवान विश्वकर्मा जी का सहयोग रहा। चाहे उस समय निर्मित मंदिर हो या फिर द्वारका नगरी। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री कृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा जी ने सुन्दर द्वारका नगरी का निर्माण किया था। साथ ही यह विशेष तथ्य विश्वकर्मा जी ने समुद्र देवता से स्थान मांगा था और समुद्र देवता ने उतना स्थान खाली कर दिया था तथा प्रयोजन सिद्ध होने पर भगवान श्रीकृष्ण के आदेशानुसार द्वारका नगरी को जल में डुबा दिया गया या यूं कहें कि समुद्र अपने स्थान पर वापस आ गया।
मोहन जोदड़ो सभ्यता या खुदाई में प्राप्त स्थान से अद्भुत निष्कर्ष या परिणाम सामने आया। वह यह कि वह हजारों वर्ष या 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता हैं तथा पूर्ण वास्तु के अनुरूप हैं। इतनी बड़ी सभ्यता का निर्माण पूर्ण वास्तु के अनुसार करना मानव के द्वारा संभव एक संशय उत्पन्न करता हैं। पूरी सभ्यता में वास्तु के प्रत्येक नियम का बड़ी सावधानी के साथ प्रयोग किया गया था। अशुद्ध जल निकाय (ड्रेनेज सिस्टम) की जबरजस्त प्लानिंग थी। जो आज भारतवर्ष के मुम्बई, दिल्ली जैसे महानगरों में विकट समस्या बनी हुई हैं। उस समय बने स्नानागार पूर्ण वास्तु के अनुरूप थे। इसकी भली भांति जांच होती हैं।
मेरे गुरूजी द्वारा बताया गया कि ‘मोहन जोदड़ो‘ का सिन्धी भाषा में अर्थ होता है मोहन का घर (मोहन अर्थात् कृष्ण) अतः यह सम्भवतः द्वारका नगरी ही थी जिसे खुदाई में प्राप्त किया गया हैं। भौगोलिक स्थिति के अनुसार भरतीय वास्तु अन्य देशों से पूर्णतः अलग प्रतीत होता हैं। उदाहरण के लिए देखे- भारत के उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत स्थित है, वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी राष्ट्र चीन को देखे तो चीन के दक्षिण में हिमालय पर्वत हैं। अतः यह महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि चीन के वास्तु नियम व उपाय हमारे लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। मैंने अनुभव में पाया कि चीन के वास्तु यंत्रों का घर में प्रयोग किया गया तो विपरीत परिणाम की वृद्धि हुई। पारिवारिक क्लेश, अशांती बढ़ी तथा सुख समृद्धि भी प्रभावित होने लगी।
वर्तमान में वास्तु की उपयोगिता इसी बात से प्रमाणित है कि चाहें मकान, दुकान, आॅफिस, फैक्ट्री, उद्योग सभी स्थानों पर वास्तु विद् की सलाह से कार्य किया जा रहा हैं। पंच महाभूत आकाश, पृथ्वी, वायु, अग्नि व जल सही वास्तु के प्रमुख आधार हैं। किसी एक तत्व के संतुलित न रहने पर हमारी शक्ति क्षिण होती हैं। मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता है तथा स्वास्थ्य प्रभावित होता हैं और कई प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होती रहती हैं।
भूमि खरिदते समय ध्यान देंने योग्य बातें-
भूमि खरिदते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भूमि शुद्ध हो, सुगंधमय हो, दूर्वा से आच्छादित हो। भूमि पीली, कीड़े मकोड़े वाली, गड्ढ़ों से युक्त सूपाकार, श्मशान वाली बामी युक्त रेतीली नहीं होना चाहिए। जो भूमि हम खरिदें उसमें बरगद, नीम, पीपल आदि पेड़ तो नहीं हैं। यदि हैं तो विधि विधान से उस वृक्ष के पूजन के बाद ही भूमि साफ करवाना चाहिए। समस्त वृक्षों की कटाई नहीं करनी चाहिए। साथ ही यदि अकुवा या बिल्वपत्र का पेड़ हो तो उसे कटवाएं नहीं उसी स्थान पर रहने दे व अपनी तैयारी में परिवर्तन करलें।
गौ मुखाकार प्लाॅट निवास के लिए शुभ हैं परन्तु व्यापार के लिए अशुभ होता हैं। वहीं सिंह मुखाकार प्लाॅट व्यापार के लिए शुभ है किन्तु रहने या निवास के लिए अशुभ होता हैं। मकान के निर्माण में सावधानि रखना चाहिए क्योंकि निर्माण के समय हुई गलती के दोष को फिर किसी स्थायी उपाय से स्थायी रूप से निवारण अत्यन्त ही कठिन हो जाता हैं। ब्रह्म स्थान का खुला रहना शुभ हैं। रोशनदान पूर्व व उत्तरपूर्व दिशा में हो तो अच्छा रहता हैं। मुख्य प्रवेश द्वार की ऊंचाई अन्य कक्षों के कमरों के द्वार से अधिक होना चाहिए।
यदि दक्षिण मुखी मकान हैं तो इस स्थिति में उत्तर या पूर्व स्थान पर खिड़की खोलना एक मात्र. रास्ता हैं। यदि यह संभव न हो तो एक मिरर का प्रयोग करें, जो साउथ फेसिंग की नकारात्मक ऊर्जा का प्रत्यावर्तन कर सकें। साउथ फेसिंग में नकारात्मक शक्ति बहुत तीव्र गति से एकत्रित होती हैं। उससे कम मात्रा में त्मसमंेम हो पाती हैं। अतः साउथ फेसिंग प्लाॅट का चुनाव नहीं करना चाहिए अथवा किसी वास्तु विशेषज्ञ से सलाह के बाद ही निर्माण करवाना चाहिए। जहां तक सम्भव हो सके तोड़-फोड़ से बचना चाहिए। शुभ उपाय व मुहूर्त का प्रयोग करना चाहिए। प्रत्येक वर्ष में कम से कम एक बार घर में धार्मिक आयोजन सुन्दरकाण्ड वगैरह अवश्य करवाना चाहिए।
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