ग्रह योग - एक अध्ययन
ज्योतिष शास्त्र में कुण्डली में पाए जाने वाले योगों का अपना अलग ही महत्व हैं। योग का अर्थ है जुड़ना। जब एक ग्रह का संबंध दूसरे ग्रह से होता है तो इसे योग कहते हैं। कुण्डली के 12 (द्वादश) भावों में 9 (नौ) ग्रह विराजमान होते हैं। अतः योग का बनना स्वभाविक हैं। इसके अतिरिक्त ग्रहों की दृष्टियॉ भी होती हैं अतः ग्रहों का दृष्टि संबंध भी योग की श्रेणी में आता हैं।
ज्योतिष के प्ररंभिक पाठकों के लिए यह एक अतिमहत्वपूर्ण विशेषांक हैं। इस अंक के माध्यम से वे विभिन्न योगों से परिचित होंगे। यहां मैं कुछ विशेष योगों के बारे में बता रहा हूँ, जिन पर मेरा विशेष अध्ययन रहा हैं।
1. गजकेसरी योगः-
शास्त्रानुसार यह सर्वश्रेष्ठ योग है, यह योग गुरू (बृहस्पति) तथा चंद्रमा द्वारा निर्मित होता हैं। गुरू तथा चंद्रमा की केन्द्र स्थिति (दोनों का समसप्तक योग) या गुरू, चंद्रमा की युति गजकेसरी योग का निर्माण करती हैं। केन्द्र में यह योग सर्वाधिक शुभ फल प्रदान करने वाला होता हैं। पाप ग्रहों की दृष्टि इस योग पर हो तो इसके शुभ फल में कमी आती हैं। साथ ही शुभ ग्रह इसकी शुभता व फलों की अधिक वृद्धि करते हैं। (नैसर्गिक शुभ ग्रह तथा कारक ग्रह)
नोटः-
युति के द्वारा जब गजकेसरी योग बनता है तो जिस घर में बनता है उसके फल तथा जिस पर दृष्टि अर्थात् सातवें घर में भी शुभ फलों में वृद्धि करता हैं। कुण्डली में दो भाव बहुत मजबूत स्थिति में हो जाते हैं।
यह प्रथम श्रेणी का राजयोग माना जाता हैं। यह योग पूर्णतः गुरू व चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता हैं। जब कुण्डली में गुरू (बृहस्पति) की स्थिति कर्क, धनु, या मीन राशि में हो तो यह प्रबल गजकेसरी योग बनता हैं। कर्क राशि का गजकेसरी योग विशेष आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता हैं। यश, मान-सम्मान पद, प्रतिष्ठा, उत्तम वैवाहिक व संतान सुख देने वाला होता हैं। द्वादश भाव का गजकेसरी योग मोक्षकारक भी माना गया हैं।
जब गुरू कर्क राशि में (उच्च का) (वक्री न हो) चंद्रमा के साथ हो तो सर्वाधिक प्रबल गजकेसरी योग माना गया हैं। कारण यह है कि यह योग मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम चंद्र जी की कुण्डली में विद्यमान था। इस योग के परिणाम स्वरूप उन्हें बाल्यकाल में ही श्रेष्ठ गुरूओं का सान्निध्य प्राप्त हुआ। धर्म और ज्ञान से लेकर आध्यात्मिक उन्नति इस योग की ही देन थी। कर्क लग्न में यह योग लग्नेश (चंद्र) व भाग्येश (गुरू) के द्वारा बनता है तथा यह केंद्र व त्रिकोण का संबंध भी हैं।
योग वाला जातक मेधावी, बुद्धिमान, सौहार्द्र, शास्त्र ज्ञाता, माता-पिता की सेवा करने वाला, गुरू का प्यारा, बुजुर्गों का सम्मान करने वाला, ईमानदार, धर्म में रूचि रखने वाला, आध्यात्मिक प्रवृति का तथा शिक्षा के क्षेत्र से आजीवन जुड़ा रहने वाला होता हैं। ऐसे जातक को गुरूओं/शिक्षकों का श्रेष्ठ मार्गदर्शन प्राप्त होता हैं। इस योग वाले जातक पर भगवत् कृपा अवश्य देखी गई हैं। ऐसा जातक मन का भी बहुत अच्छा होता हैं।
नोटः-
वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सफलता के लिए इस योग का महत्वपूर्ण योगदान रहता हैं। यह योग राजनीतिक क्षेत्र में नई ऊँचाईयां प्रदान करता हैं।
बुद्धादित्य योगः-
लग्न चक्रके द्वादश भावों में बुध, सूर्य के साथ होता है तब इस योग का निर्माण होता हैं। बुध, सूर्य के सर्वाधिक निकट का ग्रह होता हैं। यह सूर्य की परिक्रमा मात्र 88 दिन में पूर्ण कर लेता है अतः कुण्डली में अधिकांशतः बुध, सूर्य के साथ दिखाई देता है या फिर सूर्य के एक घर आगे या एक घर पीछे दिखाई देता हैं। इससे अधिक दूर नहीं।
नोटः-
श्री बी वी रमन इस योग के बारे में लिखते है कि जब बुध तथा सूर्य के अंशों में 10 डिग्री या अधिक का अन्तर हो तभी वह पूर्ण बुधादित्य योग होता है और च्मतमिबज त्मेनसज देता हैं। वर्तमान में यह मेरे शोध के अंतर्गत भी हैं।
कन्या राशि में बुध तथा सूर्य की युति उच्च कोटि का बुधादित्य योग बनाति है तथा सिंह लग्न में यह एक प्रबल धनदायक योग होता हैं क्योंकि बुध, लाभेश और धनेश होकर उच्च कर, लग्नेश सूर्य से युत होता हैं। विस्तृत वर्णन हेतु सौभाग्य दीप के अंक ‘धनयोग विशेषांक‘ का अध्ययन करें। नौ ग्रहों में केवल बुध ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो अपने घर में उच्च का होता हैं।
नोटः-
मैने कई कुण्डलियों के अध्ययन में यह देखा है कि जब बुधादित्य योग में बुध ग्रह अंशों में सूर्य से आगे निकल जाए तो इस योग का सर्वाधिक लाभ गणित या भौतिक में अवश्य होता हैं। ऐसे जातक का डंजीमउंजपबे बहुत अच्छा होता हैं और गणनाओं को हल करनें में बुध का ही योगदान होता हैं।
ज्योतिषियों की कुण्डली में यह योग विशेषतः पाया जाता हैं। मीन राशि का बुधादित्य योग प्रबंध के क्षेत्र में सफलता प्रदान करवाता हैं। यह योग प्रसिद्धि अवश्य दिलवाता हैं।
कुलदीपक योगः-
जन्मांग चक्र में दशम भाव में मंगल की उपस्थिति या चंद्रमा से दशम स्थान में उपस्थित मंगल कुलदिपक योग का निर्माण करता हैं। ऐसा जातक कुल का नाम रोशन करने वाला होता हैं। परिवार में सभी को साथ लेकर चलने वाला होता हैं। कुल देवता का आशीर्वाद उसे प्राप्त होता हैं। यद्यपि यह समय की बड़ी बिडम्बना है कि अधिकांशतः खासकर युवा वर्ग को यह ज्ञात नहीं है कि कुल का क्या महत्व है तथा उनके कुल देवता कौन हैं। इस योग वाला जातक साहसी, पराक्रमी, परिवार, समाज के साथ-साथ देश हित में कार्य करने की उसकी लगन होती हैं।
केमद्रुम योगः-
जन्म लग्न में चंद्रमा द्वादश भावों में कहीं पर भी अकेला स्थित हो तथा उसके एक घर आगे और एक घर पीछे कोई ग्रह स्थित न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता हैं। शास्त्रों में वर्णित है ‘चंद्र मनसो जायते‘ मन का प्रतिनिधित्व चंद्रमा करता हैं। अतः इस योग के दुष्प्रभाव चंद्रमा से प्राप्त होते हैं। महाभारत में युद्धकाल में गीता उपदेश के समय स्वयं अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा था कि हे कृष्ण, ये मन चंचल और सताने वाला हैं। इसे काबू करना अत्यंत दुष्कर हें। ठीक इसी प्रकार जब चंद्रमा पर किसी ग्रह का प्रभाव नहीं होगा तो परिणाम सकारात्मक होना कठिन हो जाता हैं। मैंने कई जन्म पत्रिकाओं में इस योग को देखा और अध्ययन स्वरूप यह निष्कर्ष पाया कि यह योग व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता ;च्वूमत वि क्मबपेपवद डांपदहद्ध कमजोर करता हैं। व्यक्ति ;ैमसि क्मबपेपवदद्ध नहीं ले पाता। उसके जिवन में प्रायः भटकाव अधिक होता हैं।
Post a Comment