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         आजीविका चयन : शोध व व्यावहारिक अनुभव

प्राचीन काल में गुरूओं द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती थी। उस समय ‘आजीविका उपार्जन‘ समस्या नहीं थी क्योंकि ‘वर्ण व्यवस्था‘ लागू थी और उसी के आधार पर व्यक्ति की आजीविका उपार्जन निर्धारित हो जाती थी। आगे चलकर पिता के आजीविका उपार्जन के माध्यम को पुत्र ग्रहण करता और उसे आगे बढ़ाता था। परंतु वर्तमान में ज्योतिषियों के समक्ष यह प्रश्न निरंतर कठिन होता जा रहा है कि यह कैसे फलित किया जाए कि किसी जातक की आजीविका उपार्जन का क्या माध्यम होगा।


      सम्पादक महोदय द्वारा यह विशेषांक ‘‘आजीविका चयन विशेषांक‘‘ रखा गया जिसका प्रमुख उद्देश्य यह है कि वर्तमान में जो अधिकांश व्यक्तियों की समस्या बनी हुयी है उसे कैसे हल किया जाए तथा सभी विद्वान ज्योतिषियों के अनुभव व शोध का लाभ ‘‘सौभाग्य दीप‘‘ के माध्यम से सभी को प्राप्त हो।


द्वादश लग्नों में आजीविका निर्धारण-


1.    मेष लग्न :-इस लग्न में मंगल, गुरू व सूर्य कारक ग्रह होते हैं। सूर्य तथा गुरू की युति केंद्र अथवा त्रिकोण में हो तो जातक अपनी बुद्धि व भाग्य से उच्च पद प्राप्त करता हैं। यह योग शासकीय सेवा में सफलता प्रदान करता हैं। यह योग लग्न में हो तो जातक उच्च कोटि का शिक्षक/प्रोफेसर बनता हैं। शिक्षा के क्षेत्र से उसका आजीवन जुड़ाव रहता हैं। मंगल तथा गुरू की युति भी राजकीय पद प्रदान कती हैं। मंगल तथा सूर्य की युति एकादश, दशम भाव में हो तो जातक विद्युत सम्बन्धित कार्य से आजीविका प्राप्त कर सकता हैं।


मेष लग्न में यदि मंगल, गुरू व सूर्य कमजोर स्थिति में हो तथा इस लग्न में अकारक माने जाने वाले बुध, शुक्र, शनि सुदृढ़ अवस्था में हो तो जातक इन ग्रहों से भी आजीविका प्राप्त कर सकता हैं। इस लग्न में शुक्र व शनि बली हैंतो व्यक्ति की आजीविका में इन दो ग्रहों का योगदान अवश्य होगा क्योंकि शनि कर्म व लाभ का स्वामी हैं वहीं शुक्र धन व व्यवसाय का स्वामी हैं। इस स्थिति में जातक स्वयं का व्यवसाय करना चाहता हैं चूंकि लग्नेश भूमि पुत्र है तथा शनि का कारकत्व पत्थर है एवं शुक्र चमकीला है अतः कुल मिलाकर यदि इस स्थिति में जब मंगल, शनि तथा शुक्र शुभ स्थिति में हों तथा जातक की राशि वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर या कुंभ हो तो जातक को ग्रेनाइट, पत्थर कटिंग सेन्टर, मार्बल, ट्रांसपोर्ट इत्यादि कार्य में लाभ होगा। मेष लग्न में बुध यदि पंचम या एकादश में हो तो जातक स्टेशनरी कार्य, एस.टी.डी./पी.सी.ओ., मोबाइल, बीमा, फोटो कापी कार्य इत्यादि से आजीविका प्राप्त करता रहेगा।


2.   वृष लग्न :-वृष लग्न में आजीविका चयन में सूर्य, बुध, शनि का योगदान अधिक दिखाई दे रहा हैं। वृष लग्न में शनि यदि दशम भाव में हो (कुंभ राशि में) तो जातक को शासकीय सेवा अवश्य प्रदान करवाता हैं। भारतीय रेलवे इसका अच्छा उदाहरण हैं। भाग्य व कर्म का स्वामी शनि दशम में पंच महापुरूष राजयोग का निर्माण करता हैं। शनि दशम का कारक भी हैं। मैने विभिन्न जातकों की जन्मपत्री में यह योग देखा है जो अपनी योग्यतानुसार भारतीय रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं। वृष लग्न ज्योतिषीय लग्न भी हैं। यदि बुध, सुर्य के साथ लग्न, द्वितीय, पंचम या एकादश (में बुध वक्री हो) में हो तो जातक को ज्योतिष का अच्छा ज्ञान होंता है तथा वह इसे आजीविका के रूप में भी अपना सकता हैं। उसे लाभ अवश्य होगा। वृष लग्न में सूर्य एकादश में हो तो जातक को चिकित्सा सम्बंधी कार्यों से लाभ प्राप्त करवाता हैं। वृष लग्न में अधिकांशतः शनि से सम्बंधित कार्यों से लाभ होता देखा गया हैं। शनि कर्म व भाग्य दोनों को साथ लेकर चलता हैं। शनि सम्बंधित कार्य जैसे- गैस एजेन्सीज, पेट्रोलियम व पेट्रो पदार्थ, रसायन, उर्वरक, पत्थर, तेल व तेल सम्बंधित पदार्थ का व्यवसाय, ट्रांसपोर्ट, पत्थर कटिंग सेंटर, काला मार्बल, सड़क निर्माण कार्य, बुलडोजर इत्यादि कार्यों से लाभ अवश्य होगा। वृष लग्न में अधिकांशतः जातक व्यवसाय को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे जातक पार्टनरशिप में भी कार्य करते हैं। परंतु उन्हें अपने पार्टनर पर हावी होना पड़ता है अन्यथा पार्टनरशिप से हानि होते देखी गयी हैं।


3.   मिथुन लग्न :- इस लग्न में आजीविका चयन की दृष्टि से बुध व गुरू प्रबल कारक होते हैं। लग्न में बुध तथा सूर्य की युति जातक को प्रशासनिक अधिकारी बनवाती हैं। मिथुन लग्न में बुध तथा गुरू की युति यदि लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, दशम या एकादश में हो तथा चंद्रमा युत या दृष्ट हो तो जातक का व्यवसाय मुख्यतः शिक्षा होता हैं। वह सफल भी होता हैं और स्वयं भी संतुष्ट रहता हैं। मिथुन लग्न वाला जातक ज्योतिष में भी रूचि रखता हैं। अतः इसे आजीविका का माध्यम बना सकता हैं। यह लग्न व्यवसायी लग्न भी माना जाता हैं। जातक खुद का व्यापार करना चाहता हैं। इस लग्न में यदि बुध, शुक्र, शनि बली हों तो जातक व्यवसाय अवश्य करता हैं। उसकी आजीविका के एक से अधिक माध्यम होते हैं। बुध व्यवसाय का द्योतक है तथा शनि मेहनत करवाता हैं। व्यवसाय में तेल, खाद्य तेल, खाद्य सामग्री, होटल, आयात‘निर्यात, शेयर, दलाली, बीमा, कास्मेटिक, इलेक्ट्रिनिक सामान, इत्यादि।


नोट :- मिथुन लग्न में द्वादश मंगल विदेश व्यापार भी करवाता हैं।


4.   कर्क लग्न :- दशम में मंगल या सूर्य हो तथा उसकी महादशा/अंतर्दशा हो तो जातक उच्च शासकीय पद प्राप्त करता हैं। मंगल सेना या पुलिस में पद प्राप्त करवाता हैं। गुरू व सूर्य की युति एक उच्च कोटि का शिक्षक अवश्य बनाती हैं। अतः जातक शिक्षा से आजीविका प्राप्त कर सकता हैं। इस लग्न वाले जातक अधिकांशतः सरकार से जुड़े देखे गए हैं। लेकिन यदि बुध, शुक्र व शनि बली हों तो व्यवसाय की संभावना बनती हैं। शनि यदि दशम में वक्री हो और गुरू से दृष्ट हो तो लोहे के कार्य में लाभ अवश्य करवाता हैं। यह लग्न मुख्यतः शिक्षा प्रदान करने से संबंधित हैं। इस लग्न में बुध या गुरू आत्मकारक हो जाएं या बुध तथा गुरू अंशो में अति व्याप्त कर जाएं तो जातक शिक्षण कार्य को अपनी आजीविका बनाता हैं। लग्न में बुध, गुरू, सूर्य हों तो जातक उच्च कोटि का ज्योतिषी बनता है तथा ज्योतिष को आजीविका का सशक्त माध्यम बना सकता हैं।


5.   सिंह लग्न :- गुरू, सूर्य, बुध कारक ग्रह होते हैं। बुध और सूर्य लग्न में हों तो उच्च राजकीय ..पद अवश्य प्राप्त होता हैं। बुध व सूर्य द्वितीय भाव में हों तो जातक शिक्षक/प्रोफेसर बन सकता हैं। शिक्षण सम्बंधी कार्य, बैंक, बीमा, शेयर से लाभ अवश्य प्राप्त होता हैं। इस लग्न में शनि व बुध की मजबूत स्थिति व्यापार की ओर प्रवृत करती हैं। मोटर वाहन क्रय-विक्रय, दलाली, कमीशन एजेंट, लोहे व तेल से सम्बंधित व्यवसाय से लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं। कन्या राशि का बुध जातक को ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त करवाता हैं। अतः जातक ज्योतिष को आजीविका के रूप् में भी अपना सकता हैं। इस लग्न वाले जातक अधिकांशतः वाणी संबंधित कार्यों से आजीविका प्राप्त करते हुए देखे गये हैं। इस लग्न में शुक्र यदि दशम भाव में हो तो जातक शुक्र से सम्बंधित कार्य जैसे- इलेक्ट्रिक सामान, कास्मेटिक, फैन्सी वस्तु, गिफ्ट शाप का व्यवसाय भी कर सकता हैं।


6.   कन्या लग्न :- इस लग्न का महत्वपूर्ण कारक ग्रह बुध हैं। इस लग्न में आजीविका चयन सर्वाधिक आसान होता हैं। कन्या लग्न में बुध तथा सूर्य यदि लग्न, चतुर्थ, नवम, दशम, या एकादश भाव में हो तो जातक राजपत्रित अधिकारी अवश्य बनता हैं। इस लग्न में गुरू, चन्द्रमा के साथ यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम या एकादश भाव में हो तो शुभ व नैतिक कार्यों के द्वारा  आजीविका प्राप्त होती हैं। कन्या लग्न हो और बुध की महादशा हो तथा बुध द्वादश भावों में कही भी सूर्य के साथ हो तो जातक ज्योतिष अवश्य सीखता है तथा यही युति यदि लग्न, पंचम, नवम, दशम में हो तो जातक आजीविका के रूप में ज्योतिष को अपना सकता है तथा इससे लाभ भी प्राप्त कर सकता हैं। इस लग्न में नवम भाव में स्थित बुध राष्ट्रीय/अप्तर्राष्ट्रीय ख्याति ज्योतिष में अवश्य दिलवाता हैं। इस लग्न में बुध, सूर्य के साथ युत हो तो जातक शासकीय सेवा में जाने की इच्छा रखता हैं तथा उसमें सफल होता हैं। वहीं जब यही बुध, शुक्र के साथ हो तो व्यवसाय की ओर अग्रसर करवा देता हैं। इस लग्न में बुध, गुरू, शिक्षण कार्य से आजीविका प्रदान करवाते हैं।


7.   तुला लग्न :- आजीविका उपार्जन हेतु इस लग्न के जातक अधिकांशतः परेशान दिखाई देते है। इसका मूल कारण यह है कि इस लग्न में दशमेश अर्थात कर्म का स्वामी चन्द्रमा होता है और चन्द्रमा यदि पाप प्रभाव में हो तो किसी कार्य में मन नहीं लगने देगा। एक कार्य को जातक पूर्ण मन से नहीं करता और निरंतर कार्य बदलाव की सोचता रहता हैं। इस लग्न वालों के लिए यदि चंद्रमा बली हो तो कृषि कार्य, कृषि यंत्र व उपकरण, उर्वरक, खाद, नर्सरी, बागवानी, श्वेत पदार्थों का व्यवसाय जैसे- दूध, पनीर, डेयरी उद्योग इत्यादि और सूर्य बली हो तो जातक मेडिकल से सम्बंधित कार्यों से लाभ प्राप्त कर सकता हैं। शनि से संबंधित कार्यों से जातक आजीवन लाभ प्राप्त कर सकता हैं। इस लग्न में गुरू, चंद्र की युति बंधक योग बनाती है क्योंकि चंद्रमा दशमेश होकर प्रबल कारक है वहीं गुरू इस लग्न में प्रबल अकारक हैं। जातक यह समझ नहीं पाता कि उन्नति क्यों नहीं हो रही हैं। यह योग लग्न या दशम में बन जाए तो सर्वाधिक खराब माना जाता हैं। इस लग्न वाले निजी क्षेत्रों से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।


8.   वृश्चिक लग्न :- मंगल, गुरू व सूर्य प्रबल कारक ग्रह हैं। सूर्य यदि लग्न, नवम या दशम में हो तो उच्च अधिकारी योग बनता हैं। वहीं यदि मंगल लग्न, तृतीय, षष्ठ या दशम भाव में हो तो जातक को पुलिस या सेना में उच्च पद दिलवाता हैं। इस योग के लिए सूर्य भी बली होना चाहिए क्योंकि मान-सम्मान का कारक सूर्य ही है। इस लग्न में गुरू का सम्बंध यदि लग्न, द्वितीय, पंचम, नवम, दशम या एकादश भाव से हो तो जातक शिक्षा के क्षेत्र से सम्बंधित होता है और यदि बुध भी युत हो तो उच्च कोटि का अध्यापक/प्रोफेसर अवश्य बनवा देता हैं। यह लग्न मुख्यतः राजकीय कार्यों से संबंधित होता हैं। यदि व्यक्ति की शिक्षा पूएार् नहीं है और सूर्य, मंगल की स्थिति वही है जो पहले बताई गई है तो जातक सरकार की योजनाओं की जानकारी लेकर स्वयं का व्यवसाय कर सकता हैं। सरकारी टेंडर/ठेके ले सकमा है, उसे लाभ होगा। इस लग्न में यदि बुध, शुक्र, शनि बली हों तो कारक ग्रह कमजोर हो जायेंगे अतः जातक की आजीविका में इन ग्रहों का योगदान होगा और यदि इन तीनों में से किसी की महादशा आ जाए तो जातक के लिए महादशा आ जाए तो जातक के लिए महादशा अच्छी नहीं मानी जायेगी। इस स्थिति में जातक कोई भी व्यवसाय करे, उसे अपनी पत्नी के नाम से प्रारम्भ करे, और उसे ही मालिक बनाए। भावात भवम् के अनुसार ये ग्रह पत्नी के लिए योगकारक हो जायेंगे और जातक को लाभ की संभावना भी अधिक होगी।


9. धनु लग्न :- धनु लग्न वाला जातक आजीविका हेतु परेशान नहीं होता क्योंकि लग्नेश गुरू एवं मूल त्रिकोण धनु, अतः गुरू का पूर्ण फल प्राप्त होता हैं। यदि गुरू बली है (पाप ग्रहों के साथ नहीं हो) तो जातक अपने कार्य से संतुष्ट रहता हैं। कई बार वह कार्य को ईश्वर द्वारा प्रदत्त मानकर उसे पूर्ण करने का प्रयास करता हैं। इस लग्न में यदि गुरू लग्न, चतुर्थ, पंचम, दशम, एकादश में हो तो जातक शिक्षा प्रदान करने में माहिर होता हैं। उसकी स्वयं की शिक्षा भी उच्च कोटि की होती हैं। वह श्रेष्ठ अध्यापक सिद्ध होता हैं। इस लग्न की विशेषता है कि दशम तथा सप्तम भाव में बुध की राशि कन्या तथा मिथुन पड़ती हैं अतः या तो इस लग्न का जातक शीघ्र आजीविका का माध्यम प्राप्त कर लेता है या फिर बार-बार बदलते देखा गया हैं। दशम भाव में अकेला बुध बार-बार व्यवसाय परिवर्तन करवाता हैं। इस लग्न वाले जातकों का यदि मंगल व सूर्य बली है तो अग्नि से सम्बंधित कार्य योग्यतानुसार जैसे- इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग, सरकारी विद्युत ठेके, बिजलीघर, अग्निशमन सेवा इत्यादि में कार्य कर सकते हैं। बुध व गुरू बली होने पर खाद्य पदार्थों से सम्बंधित कार्य जैसे- जनरल स्टोर, होटल, स्टेशनरी, पाठ्य सामग्री, प्रकाशन, लेखन कार्य, ज्येतिषी कार्य, धार्मिक पुस्तक विक्रेता, धार्मिक सामग्री क्रय-विक्रय, विद्यालय या स्वयं का कालेज, गौशाला इत्यादि कार्यों से लाभ प्राप्त कर सकता हैं।


10. मकर लग्न :- मकर लग्न में, यदि मंगल व शुक्र की युति केंद्र में हो तो उच्च राजकीय पद प्राप्त होता हैं। शुक्र केंद्र या त्रिकोण में है तो जातक हीरे के आभूषण का शोरूम, कास्मेटिक, शानदार चमकीले एन्टीक फैशन डिजाइन आदि किसी भी फलात्मक कार्य के द्वारा आजीविका प्राप्त की जा सकती हैं। शनि केंद्र या त्रिकोण में शुक्र के साथ हो तो जातक व्यवसाय में अधिक उन्नति करता हैं। वह पेट्रोल पम्प, पेट्रो उत्पाद, ट्रेक्टर एजेन्सी, माइन्स, पत्थर कटिंग सेन्टर, ट्रांसपोर्ट, कल कारखाना इत्यादि से आजीविका प्राप्त कर सकता हैं।


11. कुंभ लग्न :- इस लग्न वाला जातक यदि थेड़ी सी समझदारी से काम ले तो जीवन में बहुत अधिक ऊँचा उठ सकता है क्योंकि इस लग्न में वाणी व लाभ का स्वामी गुरू है तथा सुख व भाग्य का स्वामी शुक्र हैं। यह दोनों शुभ ग्रह हैं तथा यह दोनों शुभ स्थिति में हों तो जातक राजयोग अवश्य भोगता हैं। इस लग्न में गुरू व शुक्र दोनों ग्रहों को साथ लेकर चलने से ही तरक्की संभव है अन्यथा विरोधाभास अधिक दिखाई देगा। इस लग्न वाले जातक आजीविका हेतु गुरू, शुक्र से सम्बन्धित कार्य कर सकते हैं। इस लग्न में बुध दशम में एकाउन्ट, बैंक, शेयर आदि से भी लाभ प्रदान करवाता हैं। मंगल इस लग्न में आजीविका उपार्जन हेतु प्रयासों में हिम्मत प्रदान करता है तथा कर्म में वृद्धि करवाता हैं।


12. मीन लग्न :- मीन में लग्न में सप्तम भाव की राशि कन्या का प्रभाव या तो जल्उ ही आजीविका उपार्जन प्रदान करना या बार-बार बदलते रहना होता हैं। आजीविका हेतु बुध तथा गुरू कारक ग्रह हैं। प्रमुख कार्यों में बीमा, बैंकिंग क्षेत्र, शेयर, कृषक कार्य, कपड़ा उद्योग, होटल या रेस्टोरेंट, शिक्षक, ज्योतिष, कम्प्यूटर साफ्टवेयर क्षेत्र, श्वेत वस्तुओं या खाद्य पदार्थों का व्यवसाय, कोचिंग सेन्टर, विद्यालय या कालेज, धर्म आधारित कार्यों के द्वारा भी आजीविका प्राप्त की जा सकती हैं।


उपरोक्त लेख देश काल परिस्थिति पर पूर्णतः निर्भर हैं। व्यक्ति को अपनी योग्यता और आर्थिक स्थिति का आंकलन करके व्यवसाय आरम्भ करना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि कोई जातक इंजीनियर है और आर्थिक रूप से सुदृढ़ है तथा उसकी कुंडली में राज्य कृपा प्राप्ति या सरकार से लाभ है तो मेरे अनुसार उसे स्वयं नौकरी करने के स्थान पर स्वयं का उद्योग या कारखाना स्थापित करना चाहिए। वर्तमान में सरकार कई योजनाएं चला रही है और स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही हैं। इससे वह जातक तो ऊँचा उठेगा ही साथ ही वह सरकार से लाभ भी प्राप्त कर सकेगा जैसे भूमि सम्बंधी, धन सम्बंधी लाभ व इसके साथ-साथ वह अन्य कई लोगों को रोजगार प्रदान करेगा। इस प्रकार वह स्वयं तो आगे बढ़ेगा ही वह देश के विकास में भी सहयोग देगा।

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