विदेश योग
जन्म कुंडली में विदेश योग को विशेष महत्व दिया गया है | इसे कुंडली में द्वादश स्थान बोला जाता है और यदि विस्तार पूर्वक देखें तो तृतीय भाव, छठा स्थान, अष्टम स्थान और द्वादश स्थान पर ग्रह स्थित होने पर विदेश योग की संभावना बनती है, इन स्थानों पर यदि पाप ग्रह होते हैं तो विदेश योग की स्थिति जल्दी बनती है |
यदि चंद्रमा विदेशी स्थान का स्वामी बनता है तो वह जल यात्रा करवाता है, शनि, राहु और गुरु हवाई यात्रा जरूर करवाते हैं |
छठे स्थान का स्वामी, अष्टम स्थान में और अष्टम स्थान का स्वामी द्वादश स्थान में और द्वादश स्थान का स्वामी छठे स्थान में हो तो यह विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं |
तृतीय भाव में पाप ग्रह छोटी यात्राएं भी करवाते हैं जैसे की तृतीय स्थान में राहु हो तो वह छोटी-छोटी विदेश यात्राएं जरूर करवाता है इन ग्रहों का संबंध यदि कर्म स्थान से हो तो जातक विदेश में व्यापार के लिए जाता है और धन अर्जित करता है |
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